
[su_heading]podcast of hindi poem[/su_heading]
फ्रेंड आज की हमारी इस पोस्ट podcast of hindi poem में आपका स्वागत है जिसमे एक बहुत प्यारी कविता “ये किस ओर आ गए हम” सुनाई गयी है | इस कविता में आज के ज़माने के बारे में बताया गया है कि हम ना जाने किस सुख की खोज में दौड़ रहे हैं जबकि हमारा तन और मन दोनों ही अशांत हैं |
[su_highlight background=”#f7f546″ color=”#f11616″]ये किस ओर आ गए हम[/su_highlight]
ना सुख की घड़ियाँ ना चैन यहाँ
फिर भी ना थक रहे भागते
अपनों के लिए ना वक़्त बचा
फिरते खुद भी बेहाल से
ये किस ओर आ गए हम
जाने किस ओर आ गए हम
सुबह उठते ही दौड़ शुरू
जीते गोलियों के आधार पे
घर पर रही ना ग्रहलक्ष्मी
कितनी अशांति परिवार में
ये किस ओर आ गए हम
जाने किस ओर आ गए हम
बस भौतिक सुख की चिंता
चांहे टूटे जीवन के कायदे
मन की अब कौन सुनता
शामिल हुए भेड़ चाल में
ये किस ओर आ गए हम
जाने किस ओर आ गए हम
अब कौन माने बूढ़ों की
अच्छी लगे अपनी मर्ज़ी
देर सोना देर खाना
हांथों में थामे जाम हैं
ये किस ओर आ गए हम
जाने किस ओर आ गए हम
क्या इसको कहते हो प्रगति
जब पालीं इतनी सिरदर्दी
इस जीवन से लाख गुना तो
बेहतर थी पुरानी ही सदी
रुक जाओ अब वापस चलें हम
जहाँ हों खुशी के बहुत पल
ये किस ओर आ गए हम
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